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Showing posts from 2016
​हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे|| मेरी मंजिल है, कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे|| अपनी आंखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने अपनी पलकों पे सजा […] ​हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे|| मेरी मंजिल है, कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे|| अपनी आंखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने अपनी पलकों पे सजा रक्खे हैं आंसू मैंने मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे|| आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मोहब्बत सुन ले कंप-कंपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले आज इज़हार-ऐ-खयालात का मौका दे दे|| भूलना ही था तो ये इकरार किया ही क्यूँ था बेवफा तुने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे||
गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे, गुरुजी मेरे नैनन मे जल बरसे।।  मै पापन अब उनकी दासी, केसे करे प्रभु निज कि दासी, काया कपत हे तेरे डर से,  गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे।।  पतीत उदाहरण नाम तुम्हारा, दिजे गुरुजी मुझको सहारा, देखो दया ओर प्रेम नजर से, गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे।।  तुम बिन ओर ना पालक मेरा, ब्रम्हानन्द भरोसा तेरा,  विनती करत हु तेरे दर पे, गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे।। 
जिस भजन में राम का नाम ना हो, उस भजन को गाना ना चाहिए। चाहे बेटा कितना प्यारा हो, उसे सिर पे चढ़ाना ना चाहिए। चाहे बेटी कितनी लाडली हो, घर घर ने घुमाना ना चाहिए॥ जिस माँ ने हम को जनम दिया, दिल उसका दुखाना ना चाहिए। जिस पिता ने हम को पाला है, उसे कभी रुलाना चाहिए॥ चाहे पत्नी कितनी प्यारी हो, उसे भेद बताना ना चाहिए। चाहे मैया कितनी बैरी हो, उसे राज़ छुपाना ना चाहिए॥
जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का,  क्या जीवन क्या मरण कबीरा खेल रचाया लकड़ी का। । जिसमे तेरा जनम हुआ वो पलंग बना था लकड़ी का माता तुम्हारी लोरी गाए वो पलना था लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । पड़ने चला जब पाठशाला में लेखन पाठी लकड़ी का गुरु ने जब जब डर दिखलाया वो डंडा था लकड़ी का,  जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । जिसमे तेरा ब्याह रचाया वो मंडप था लकड़ी का जिसपे तेरी शैय्या सजाई वो पलंग था लकड़ी का,  जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । डोली पालकी और जनाजा सबकुछ है ये लकड़ी का जनम-मरण के इस मेले में है सहारा लकड़ी का,  जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । क्या राजा क्या रंक मनुष संग अंत सहारा लकड़ी का कहत कबीरा सुन भई साधु ले ले तम्बूरा लकड़ी का,  जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। ।
ओ झीना झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई  रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का रंग तेरी जीत का है लायी लायी लायी रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का माई तेरी चुनरिया लहराई  जब जब मुझपे है, उठा सवाल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई  जग से हारा नहीं मैं ख़ुद से हारा हूँ माँ इक दिन चमकूँगा लेकिन तेरा सितारा हूँ माँ माई रे.. माई रे.. तेरे बिन मैं तो अधूरा रहा माई रे.. माई रे.. मुझसे ही रूठी मेरी परछाई  ओ.. मेरी परछाई तेरा ख्याल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना झीना रे, उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई  रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का रंग तेरी जीत का है लायी लायी लायी रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का माई तेरी चुनरिया लहराई  जब जब मुझपे है, उठा सवाल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई
चढता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा हुये नाम वै बेनिशां कैसे-कैसे जमीं खा गई नौजवां कैसे-कैसे आज जवानी पर इतराने वाले काल पछतायेगा चढता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा तु यहां मुसाफ़ीर है , ये सराय फ़ानी है चार रोज की महेमां तेरी जिंदगानी है जन-जनी , जर-जेवर कुछ ना साथ जायेगा खाली हाथ आया है , खाली हाथ जायेगा जान कर भी अनजाना बन रहा है दिवाने अपनी उम्र फ़ानी पर , तन रहा है दिवाने इस कदर तु खोया है , इस जहां के मेले में तु खुदा को भुला है , फंस के इस झमेले में आजतक ये देखा है , पानेवाला खोता है जिंदगी को जो समझा , जिंदगी पे रोता है मिटनेवाली दुनिया का ऎतबार करता है क्या समझ के तु आखिर इससे प्यार करता है अपनी-अपनी फिकरों में जो भी है वो उलझा है जिंदगी हकिकत मे क्या है कौन समझा है आज समझ ले , कल ये मौका हाथ न तेरे आयेगा ओ गफ़लत की नींद में सोनेवाले धोका खायेगा चढता सूरज धीरे-धीरे ढलता है , ढल जायेगा मौत ने जमाने को , ये समां दिखा डाला कैसे-कैसे रुस्तम को , खाक मे मिला डाला याद रख सिकंदर के हौसले तो आली थे जब गया था दुनिया...

कब आओगे कब आओगे

कब आओगे कब आओगे जिस्म से जान जुदा होगी क्या तब आओगे देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये आजा रे के मेरा मन घबराए देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये कहाँ है रौनके महफ़िल यही सब पूछते हैं बरहा तेरे न आने का सबब पूछते हैं देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये हर बात का वक़्त मुक़र्रर है हर काम कि सात होती है वक़्त गया तो बात गयी बस वक़्त कि कीमत होती है देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये रस्ता रोका कभी काली घटा ने घेरा डाला कभी बैरन हवा ने बिजली चमक के लगी आँखे दिखाने बदले हैं कैसे-कैसे तेवर फ़ज़ा ने सारे वादे इरादे , बरसात आके , धो जाती है मैं देर करता नहीं , देर हो जाती है देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये दिल दिया ऐतबार कि हद थी जान दी तेरे प्यार कि हद थी मर गए हम खुली रही आँखें ये तेरे इंतज़ार की हद थी हद हो चुकी है आजा , जाँ पर बनी है आजा महफ़िल सजी है आजा के तेरी कमी है आजा देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये आहों कि कसम है तुझे साँसों कि क़सम है ख्वाबों कि कसम तुझको ख्यालों कि क़सम है ...

प्रीत की लत मोहे ऐसी लागी

प्रीत की लत मोहे ऐसी लागी हो गई मैं मतवारी बल बल जाऊं अपने पिया को के मैं जाऊं वारी वारी मोहे सुध बुध ना रही .… तन मन की ये तो जाने दुनिया सारी बेबस और लाचार ... फिरू मैं हारी मैं दिल हारी हारी मैं ... दिल हारी तेरे नाम से जी लूं तेरे नाम से मर जाऊं ... तेरे नाम से जी लूं तेरे नाम से मर जाऊं तेरी जान के सदके मैं कुछ ऐसा कर जाऊं तूने क्या कर डाला मर गयी मैं मिट गयी मैं हो री हा हा री हो गयी मैं तेरी दीवानी ... दीवानी तेरी दीवानी ... दीवानी तूने क्या कर डाला , मर गयी मैं , मिट गयी मैं हो री हा हा री हो गयी मैं तेरी दीवानी ... दीवानी तेरी दीवानी ... दीवानी इश्क जुनूं जब हद से बढ़ जाए इश्क जुनूं जब हद से बढ़ जाए हंसते हंसते आशिक सूली चढ़ जाए इश्क का जादू , सर चढ़कर बोले इश्क का जादू , सर चढ़कर बोले खूब लगा लो पहरे रस्ते रब खोले यही इश्क दी मर्ज़ी हैं यही रब दी मर्ज़ी हैं यही इश्क दी मर्ज़ी हैं यही रब दी मर्ज़ी हैं तेरे बिन जीना कैसा हाँ खुदगर्जी है तूने क्या कर डाला मर गयी मैं मिट गयी मैं हो री हा ...

भर दो झोली मेरी या मुहम्मद

तेरे दरबार में दिल थाम के वो आता है   जिसको तू चाहे , हे नबी तू बुलाता है   भर दो झोली मेरी या मुहम्मद   लौट कर मैं ना जाऊंगा खाली   भर दो झोली मेरी या मुहम्मद   लौट कर मैं ना जाऊंगा खाली   बांध दीदों में भर डाले आंसू   सील दिए मैंने दर्दों को दिल में   बांध दीदों में भर डाले आंसू   सील दिए मैंने दर्दों को दिल में   जब तलक तू बना दे ना तू बिगड़ी   दर से तेरे ना जाए सवाली   भर दो झोली मेरी या मुहम्मद   लौट कर मैं ना जाऊंगा खाली   भर दो झोली आका जी   भर दो झोली हम सबकी   भर दो झोली नबी जी   भर दी झोली मेरी सरकार-ए-मदीना   लौट कर मैं ना जाऊँगा खाली   खोजते खोजते तुझको देखो   क्या से क्या , या नबी हो गया खोजते खोजते तुझको देखो   क्या से क्या , या नबी हो गया   देखबर दर-ब-दर फिर रहा हूँ   मैं यहाँ से वहां हो गया हूँ देखबर दर-ब-दर फिर रहा हूँ   मैं यहाँ से वहां हो गया हूँ   दे दे या नबी मेरे दिल क...