हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे|| मेरी मंजिल है, कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे|| अपनी आंखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने अपनी पलकों पे सजा […] हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे|| मेरी मंजिल है, कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे|| अपनी आंखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने अपनी पलकों पे सजा रक्खे हैं आंसू मैंने मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे|| आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मोहब्बत सुन ले कंप-कंपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले आज इज़हार-ऐ-खयालात का मौका दे दे|| भूलना ही था तो ये इकरार किया ही क्यूँ था बेवफा तुने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे||
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Showing posts from December, 2016
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गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे, गुरुजी मेरे नैनन मे जल बरसे।। मै पापन अब उनकी दासी, केसे करे प्रभु निज कि दासी, काया कपत हे तेरे डर से, गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे।। पतीत उदाहरण नाम तुम्हारा, दिजे गुरुजी मुझको सहारा, देखो दया ओर प्रेम नजर से, गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे।। तुम बिन ओर ना पालक मेरा, ब्रम्हानन्द भरोसा तेरा, विनती करत हु तेरे दर पे, गुरुजी दरश बिना जियरा मोरा तरसे।।
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जिस भजन में राम का नाम ना हो, उस भजन को गाना ना चाहिए। चाहे बेटा कितना प्यारा हो, उसे सिर पे चढ़ाना ना चाहिए। चाहे बेटी कितनी लाडली हो, घर घर ने घुमाना ना चाहिए॥ जिस माँ ने हम को जनम दिया, दिल उसका दुखाना ना चाहिए। जिस पिता ने हम को पाला है, उसे कभी रुलाना चाहिए॥ चाहे पत्नी कितनी प्यारी हो, उसे भेद बताना ना चाहिए। चाहे मैया कितनी बैरी हो, उसे राज़ छुपाना ना चाहिए॥
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जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का, क्या जीवन क्या मरण कबीरा खेल रचाया लकड़ी का। । जिसमे तेरा जनम हुआ वो पलंग बना था लकड़ी का माता तुम्हारी लोरी गाए वो पलना था लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । पड़ने चला जब पाठशाला में लेखन पाठी लकड़ी का गुरु ने जब जब डर दिखलाया वो डंडा था लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । जिसमे तेरा ब्याह रचाया वो मंडप था लकड़ी का जिसपे तेरी शैय्या सजाई वो पलंग था लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । डोली पालकी और जनाजा सबकुछ है ये लकड़ी का जनम-मरण के इस मेले में है सहारा लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। । क्या राजा क्या रंक मनुष संग अंत सहारा लकड़ी का कहत कबीरा सुन भई साधु ले ले तम्बूरा लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। ।
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ओ झीना झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का रंग तेरी जीत का है लायी लायी लायी रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का माई तेरी चुनरिया लहराई जब जब मुझपे है, उठा सवाल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई जग से हारा नहीं मैं ख़ुद से हारा हूँ माँ इक दिन चमकूँगा लेकिन तेरा सितारा हूँ माँ माई रे.. माई रे.. तेरे बिन मैं तो अधूरा रहा माई रे.. माई रे.. मुझसे ही रूठी मेरी परछाई ओ.. मेरी परछाई तेरा ख्याल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना झीना रे, उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का रंग तेरी जीत का है लायी लायी लायी रंग तेरी रीत का, रंग तेरी प्रीत का माई तेरी चुनरिया लहराई जब जब मुझपे है, उठा सवाल माई तेरी चुनरिया लहराई झीना झीना रे उड़ा गुलाल माई तेरी चुनरिया लहराई