किसी से उनकी मंजिल
कुर्बान में उनकी
बक्शीश के मक्षद भी जुबान पर लाया नहीं..
बिन मांगे दिया
और इतना दिया दामन में हमारे समाया नहीं..
जितना दिया सरकार
ने मुजको उतनी मेरी ओकात नहीं..
ये तो करम हे
उनका वरना मुज्मे तो एसी बात नहीं...
किसी से उनकी
मंजिल का पता पाया नहीं जाता
जहां है वो फरिस्तो
का वहा साया नहीं जाता...किसी से....
फकीरी में भी
मुजको मांगने में शर्म आती है..
केसी फकीरी....झूले
झूले लाल...में रमता जोगी....
फकीरी में भी
मुजको मांगने में शर्म आती है..
तेरा बनके अब
मुझसे हाथ फेलाया नहीं जाता...
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